एक सृजन की आस में ही चलती यह साँस है,
कैसी है अनबूझ पहेली, कैसी अनमिट प्यास है।
दीवाली में दीप जले जब,
अँधियारा तब जाये हार,
घृर्णा-घृर्णा की धुंध छटे
बिखरे चारो ओर ही प्यार।
इक दिन ऐसा दीप जलेगा, मुझको यह विश्वास है,
कैसी है अनबूझ पहेली, कैसी अनमिट प्यास है
मस्त फकीरा गली-गली में
गाये अमन चैन के गीत,
जिसकी एक तन पर केवल
गले लगे सब बिछड़े मीत।
उसी फटी झोलीवाले भिच्छुक की मुझे तलाश है,
कैसी है अनबूझ पहेली, कैसी अनमिट प्यास है।
चन्द रुपहले तारो के बदले
बिक ले कुछ दिन दुनिया,
कुछ रंगीन कागजो पर बस
मर-मिट ले कुछ दिन दुनिया।
माटी जीतेगी मड़ियो से यह अंतर की आस है,
कैसी है अनबूझ पहेली, कैसी अनमिट प्यास है।