कुछ सर्ग कामायनी जैसे फिर से धरती पर उतर गये,
फिर से जल प्लावन दृश्य पुराने इसी धरा पर उभर गये।
सम्बन्ध श्वास के औ’ तन के फिर से मन को तड़पाएँगे,
फिर से पुरवाई आयेगी, पर वे दिन लौट न पाएंगे।

कुछ सर्ग कामायनी जैसे फिर से धरती पर उतर गये,
फिर से जल प्लावन दृश्य पुराने इसी धरा पर उभर गये।
सम्बन्ध श्वास के औ’ तन के फिर से मन को तड़पाएँगे,
फिर से पुरवाई आयेगी, पर वे दिन लौट न पाएंगे।
घर से निकले अगर हम बहक जायेंगे
वो गुलाबी कटोरे छलक जायेंगे
दुश्मनी का सफर इक कदम दो कदम
तुम भी थक जाओगे हम भी थक जायेंगे
तू चल, तेरे रास्ते को
तुझ जैसे राही का इंतजार है
जिस दायरे से सिमट रहा
वो दायरा बढ़ा ले तू
कब तक यूही सिमट सका
उस दायरे से आगे निकल ले तू
बस सम्हल ले तू,
सम्हल ले तू
मैं अबाध गति हूँ, मैं अमर्त्य जीवन,
कजरी की शाश्वतता, अंतहीन सावन।
गहरी लम्बी सी निशा की मैं झनझन,
डूब रहा तिरता सा एक अकेला मन।
रुकती सी, चलती सी, खुशियाँ और वेदना,
मुझे मत रोकना।
कुछ मिलता, कुछ खो जाता है,
जगे कोई, कोई सो जाता है,
छीन अगर लेता है कुछ युग,
जीवन कुछ तो दे जाता है।
जीत-हार के जैसी थी।
नटखट बचपन,चंचल यौवन,दुःखी बुढ़ापे जैसी थी।
रामजी की धरती पर रावण की जीत
हँसती रहूं या फिर रो दूँ मैं रामजी?
राधा की धरती पर स्वारथ की प्रीत
जग जाऊँ कुछ छण या सो जाऊँ रामजी?
देखी दुनिया की ऐय्यारी,
अच्छो की ऊँची मक्कारी,
उजलेपन की घोर पराजय,
रंगो के ओछेपन की जय।
बहुत भला है अपना हाल,
छूटा तो जी का जंजाल।
नीलगगन के सामने
हम भी बदले, तुम भी बदले,
बदल गया संसार।
इसी चमन की आंख ने
यह भी देखा, वह भी देखा
पहुँच गया मँझधार।
सफलता वो ढूंढन जब चला
सफलता न मिलया कोय
मन की सफलता प्राप्त हो
जो तीन रूप में होय
सुख, शान्ति, समृद्धि
लिखा गया कुछ,उसे पढ़ा गया कुछ,
निराकार माटी को गढ़ा गया कुछ,
विस्तृत वितानों का छोटा ह्रदय,
सारे फकीरों को लूटने का भय।
गढ़ी कथा मैने भी स्वार्थ की,
दुनिया अलग है यथार्थ की।