बाढ़ पर कविता( Hindi Poetry)
कुछ सर्ग कामायनी जैसे फिर से धरती पर उतर गये,
फिर से जल प्लावन दृश्य पुराने इसी धरा पर उभर गये।
सम्बन्ध श्वास के औ’ तन के फिर से मन को तड़पाएँगे,
फिर से पुरवाई आयेगी, पर वे दिन लौट न पाएंगे।
निन्दियारी आँखों के सपने अब भयों में बदल रहे,
बच्चे अबोध औ’ पशु बेबस कुछ डूब रहे, कुछ संभल रहे।
संदेह सभी को है कि वे स्वजन पुनः मिल पाएंगे,
फिर से पुरवाई आएगी, पर वे दिन लौट न पाएंगे।
उस अमर कृति की प्रसाद के कुछ पंक्तियाँ फिर याद आ जातीं,
जल की विप्लवकारी करवट फिर श्रद्धा मनु तक पहुंचा जाती,
क्या फिर से प्रभु श्रद्धा मनु से नव सृष्टि सृजन करवाएंगे?
फिर से पुरवाई आएगी, पर वे दिन लौट न पाएंगे।
हम जीतेंगे सारे जग को, विश्वास उचित तो है लेकिन,
सारी दुनिया है मुठी में, अहसास उचित तो है लेकिन,
जो रटते थे विज्ञानं यहाँ, क्या वेग रोक वे पाएंगे?
फिर से पुरवाई आएगी, पर वे दिन लौट न पाएंगे।
मैंने ही देखी थी भूमिका, फिर उपसंहार भी देख लिया,
छड़भंगुर है जीवन जग में सच्चा विचार है देख लिया,
यदि जीवित रहे बचे हम तो, मानवतावाद दिखाएंगे,
फिर से पुरवाई आएगी, पर वे दिन लौट न पाएंगे।
परिणामाो की सबको चिंता, सब ही भविष्य है सोच रहे,
अपने दोषो को न कोसा, सब ही प्रकृति को कोस रहे,
रजनी तो डरा रही है अब, कल को फिर दिवस डराएंगे,
फिर से पुरवाई आएगी, पर वे दिन लौट न पाएंगे।