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कुछ मिलता, कुछ खो जाता है,
जगे कोई, कोई सो जाता है,
छीन अगर लेता है कुछ युग,
जीवन कुछ तो दे जाता है।
जीत-हार के जैसी थी।
नटखट बचपन,चंचल यौवन,दुःखी बुढ़ापे जैसी थी।

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तुमको घुँघरू के स्वर में संगीत सुनाई देता है,
लेकिन जख्मी पाँव कहानी मुझको अलग सुनाते हैं।
सुख पल हैं कुछ दिन,पर ये भी आखिर बीतेंगे ही,
दिन आखिर दिन ही तो ठहरे, यूँ ही आते-जाते हैं।

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