Madhushala poetry

मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला, प्रियतम,अपने ही हाथो से आज पिलाऊंगा प्याला; पहले भोग लगा लूँ तुझको फिर प्रसाद जग पायेगा; सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला।

Madhushala poetry

प्यास तुझे तो, विश्व तपाकर पूर्ण निकालूँगा हाला,

Madhushala poetry

एक पाँव से साकी बनकर नाचूँगा लेकर प्याला;

Madhushala poetry

जीवन की मधुता तो तेरे ऊपर कब का वार चुका आज निछावर कर दूंगा मैं तुझ पर जग की मधुशाला।

Madhushala poetry

प्रियतम, तू मेरी हाला है, मैं तेरा प्यासा प्याला, अपने को मुझमें भरकर तू बनता है पीनेवाला;

Madhushala poetry

मैं तुझको छक छलका करता, मस्त मुझे पी तू होता; एक दूसरे को हम दोनों आज परस्पर मधुशाला।

Madhushala poetry

भावुकता अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला, कवि साकी बनकर आया है भरकर कविता का प्याला;

Madhushala Poetry 

कभी न छड़ भर खाली होगा लाख पिए, दो लाख पिए पाठकगढ़ है पीनेवाले, पुस्तक मेरी मधुशाला।

Madhushala poetry

मधुर भावनाओ की सुमधुर नित्य बनाता हूँ हाला भरता हूँ इस मधु से अपने अंतर का प्यासा प्याला;

Madhushala poetry

उठा कल्पना के हाथों से स्वयं उसे पी जाता हूँ अपने ही में हूँ मै साकी, पीनेवाला, मधुशाला