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समय

समय सीमा तय की थी जिंदगी में कार्य के अन्तराल की

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कोई वजह बन जाता मेरे समय अवधि के चाल की

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इस चाल से हर कार्य पूर्ण हो जाये ये रहता मन के किसी कोने में पर कार्य जब भी पूर्ण हो पाये समय युही बीतता जाये

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जो मन थोड़ा सकुचा सा जाता सकुचे मन से बात थोड़ी समझ है आयी

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समय सब ने एक समान है पायी उस एक सामान समय से चंचल मन ने बांधा है उत्पन्न करायी

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इधर उधर की भागदौड़ में मन की तेज़ रफ़्तार से हम नहीं चल पाते है

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मन को अगर कुछ भी भा जाता समय का पत्ता गोल हो जाता

जो समय निर्धारित मेरे वही समय प्रबन्थ हो पाते

सुबह सुबह जब देर होती शाम हमारी देर से आती

बस अंतर इतना होता कि अन्तराल भी साथ होती घड़ी टिक टिक चलती रहती हम नहीं चल पाते है

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