पृथ्वी हमारी अमृत धारा, नदियों की विशाल संचारा।

वनों की घनता, बाग़-बगीचों का रंग, छोड़ो न उन्हें बदलने की जंग।

हर बूंद में छुपा संतुलन, यही है वातावरण का अंग।

कारों की भीषण ध्वनि, उद्घोषों की बारिश,

प्रदूषण की चादर छिड़कावट करती खराबीश। हवा को स्वच्छ रखने की ज़िम्मेदारी,

जंगल की मुसाफ़िरी, वन्यजीवों को मिले विश्राम की सुरांगी।

पर्यावरण हमारा जीवनदायी, इसे स्वच्छ रखने को करें अब संकल्पी।

हर कदम हमारा पृथ्वी के लिए, हर पल इसे बचाने के लिए। जोड़ें हाथ इस महायज्ञ में, पर्यावरण की रक्षा करें मन के भीतर से।

नगर-नगर बसा है प्रदूषण का घेरा, उठाएं हाथ हम सब, करें स्वच्छता का ये आह्वान।

वृक्षों को रक्षा करें, उन्हें लगाएं सुरक्षा की मुहर, हर जीवित प्राणी को मिले निरोगी हवा का खुमार।