तू चल, तेरे रास्ते को
तुझ जैसे राही का इंतजार है
जिस दायरे से सिमट रहा
वो दायरा बढ़ा ले तू
कब तक यूही सिमट सका
उस दायरे से आगे निकल ले तू
बस सम्हल ले तू,
सम्हल ले तू
![amitabh bachhan poem](https://poetrybyashutosh.com/wp-content/uploads/2021/08/%E0%A4%A4%E0%A5%82-%E0%A4%96%E0%A5%81%E0%A4%A6-%E0%A4%B9%E0%A5%80-%E0%A4%B8%E0%A5%8B%E0%A4%9A-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%B2-%E0%A4%A4%E0%A5%82-%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%B8-%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%8F-%E0%A4%B9%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%B6-%E0%A4%B9%E0%A5%88.png)
तू चल, तेरे रास्ते को
तुझ जैसे राही का इंतजार है
जिस दायरे से सिमट रहा
वो दायरा बढ़ा ले तू
कब तक यूही सिमट सका
उस दायरे से आगे निकल ले तू
बस सम्हल ले तू,
सम्हल ले तू