बैंक के दरवाज़े पर था मैं,
आशाएँ साथ लायी थीं,
ऋण की तलाश में मैं आया,
सपनों के पंखों से सजाया।
बैंक अधिकारी अनुदान दे रहे थे,
एक प्रकार की सम्भावनाएँ थीं खड़ी,
चाहता था ऋण मैं उठाना,
सपनों को साकार बनाना।
विभाजित कर रहा था सपने अपने,
पुर्जों में लपेट कर दिल के,
संकल्पित किया था एक नया क्षितिज,
विश्वास से भरा था हृदय का छिद्र।
अनुदान की ख़ुशी थी मन में,
दिल में आत्मविश्वास जगाने की चाह थी,
व्यवसाय को बढ़ाने का सपना था,
विकास की राह पर अग्रसर था।
प्रशिक्षण के लिए ऋण की जरूरत थी,
नवीनतम तकनीकों का अध्ययन करना था,
निवेश के लिए पूंजी की आवश्यकता थी,
व्यापार को बढ़ावा देना था।
बैंक के अधिकारी से मुलाक़ात हुई,
ऋण की विवरण देने की बात हुई,
पैपरवर्क और दस्तावेज़ जमा हुए,
विचारधारा की अपेक्षाओं का सामना हुआ।
संचय सामग्री पर नज़र डाली,
ऋण की गणना और मान्यता की जांच हुई,
बैंक अधिकारी ने मेरे प्यारे सपनों को समझा,
आशाओं के उड़ानों को पवन बना हुआ।
बैंक में आया था सपनों का सामरिक,
ऋण के साथ बढ़ रहा था अपारिता,
विकास की सीमाओं को छोड़ चुका था दूर,
व्यापार में चमक थी दिखाई।
ऋण देने का कार्य सम्पन्न हुआ,
बैंक की सहायता से मंजिल पहुँची,
पूरी हुई सपनों की मन्दिर में पूजा,
सच्ची मेहनत का प्रशंसाग्रह करती हैं मैं।
ऋण के साथ लिया है भारी जिम्मेदारी,
संघर्ष के समय में भी सहारा है यही,
व्यवसाय के पंख बढ़ाए यह उड़ान,
सफलता के द्वार खोले यही ताल।
ऋण की कविता आज समाप्त हो रही है,
व्यापार की दुनिया में एक पर्याय है।
संघर्ष और सामर्थ्य की ख़ातिर,
ऋण की मदद देता है व्यवसाय को सद।