कर्त्तव्य पथ पर अभिमान कर
है तेरे अंदर भी वही जुनु
बस तू कभी किसी चीज की चाह कर
Category: Motivational Poem

मन की दुविधा मिट जाती
जब हर सवाल का जवाब मिल जाता
फिर नहीं कुछ रह जाता
गूगल सबको राह दिखाता

वो दम है
जो किसी से कम नहीं
हर राह को आसान बनाने का
सपना है पर भ्रम नहीं

शिछक दिवस पर कविता
हर राह आसान हो जाती है
उस आसान राह पर
शिछक की वो शिछा याद आती है
परीछा भले ही हमारी होती है
पर शिछक के रूप में
उनकी शिछा रह जाती है

कुछ सर्ग कामायनी जैसे फिर से धरती पर उतर गये,
फिर से जल प्लावन दृश्य पुराने इसी धरा पर उभर गये।
सम्बन्ध श्वास के औ’ तन के फिर से मन को तड़पाएँगे,
फिर से पुरवाई आयेगी, पर वे दिन लौट न पाएंगे।

घर से निकले अगर हम बहक जायेंगे
वो गुलाबी कटोरे छलक जायेंगे
दुश्मनी का सफर इक कदम दो कदम
तुम भी थक जाओगे हम भी थक जायेंगे

तू चल, तेरे रास्ते को
तुझ जैसे राही का इंतजार है
जिस दायरे से सिमट रहा
वो दायरा बढ़ा ले तू
कब तक यूही सिमट सका
उस दायरे से आगे निकल ले तू
बस सम्हल ले तू,
सम्हल ले तू

मैं अबाध गति हूँ, मैं अमर्त्य जीवन,
कजरी की शाश्वतता, अंतहीन सावन।
गहरी लम्बी सी निशा की मैं झनझन,
डूब रहा तिरता सा एक अकेला मन।
रुकती सी, चलती सी, खुशियाँ और वेदना,
मुझे मत रोकना।

कुछ मिलता, कुछ खो जाता है,
जगे कोई, कोई सो जाता है,
छीन अगर लेता है कुछ युग,
जीवन कुछ तो दे जाता है।
जीत-हार के जैसी थी।
नटखट बचपन,चंचल यौवन,दुःखी बुढ़ापे जैसी थी।

रामजी की धरती पर रावण की जीत
हँसती रहूं या फिर रो दूँ मैं रामजी?
राधा की धरती पर स्वारथ की प्रीत
जग जाऊँ कुछ छण या सो जाऊँ रामजी?