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ancient rome, caracalla, terme
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तन्हाई में अक्सर हमसे
बात हमारी होती है।
हर सपने की आंख में आंसू,
हर इक ख्वाहिश रोती है।।

मीलों तक फैले सन्नाटे
या फिर चीख सुनाई दे,
नंगी तस्वीरों के मेले
या फिर भूख दुहाई दे।

अपने कंधे पर ही अपनी
लाश जिंदगी ढोती है,
हर सपने की आंख में आंसू,
हर इक ख्वाहिश रोती है।

मेरा मैं ही मेरा दुश्मन,
बैरी यह अहसास मेरा,
हारेगा, हाँ, हारेगा ही
यही अडिग विश्वास मेरा।

कुछ पल को जग जाय आत्मा,
किन्तु जन्मभर सोती है।
हर सपने की आंख में आंसू,
हर इक ख्वाहिश रोती है।

कभी किसी ने पूछा होता
क्या है बात मेरे मन में,
मुझे कभी समझाया होता
सुख है या दुःख जीवन में।

साँस खिलाये फूल और
साँस ही कांटे बोती है,
हर सपने की आंख में आंसू
हर इक ख्वाहिश रोती है।

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