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पीड़ा की परिभाषा मुस्कान से पूछोगे,
तो लोग हँसेंगे ही।
निर्धन की व्यथा जाकर धनवान से पूछोगे,
तो लोग हँसेंगे ही।।

छाती पर रखे पत्थर
कितने व्याकुल मन है,
गिनती अब कौन करे,
घायल कितने तन है ?
घर कितने गिरे होंगे तुफानो से पूछोगे,
तो लोग हँसेंगे ही।।

जाना किस रस्ते पर,
कोई खुद ही जाने न,
हूँ कौन मैं खुद को ही
कोई पहचाने न।
अपने घर का रस्ता अनजान से पूछोगे,
तो लोग हँसेंगे ही।

एक-एक निमिष पर है
अनजाने से पहरे,
किस बिंदु से कौन चले
किस बिंदु तलक ठहरे।
यह जीवन क्या है जो भगवान से पूछोगे
तो लोग हँसेंगे ही।

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