नीलगगन के सामने
हम भी बदले, तुम भी बदले,
बदल गया संसार।
इसी चमन की आंख ने
यह भी देखा, वह भी देखा
पहुँच गया मँझधार।
इतिहास के पन्ने पलटे, बंद कर दिए कई झरोखे,
हारे कितनी बार और फिर, कितने पर्व जीत के देखे।
इसी धरा के सामने
सफल हुए कुछ, कितनो की ही
जान गई बेकार।
रूप बदलती मानवता है, जीवन शैली का अंतर है,
गति ऐसी पकड़े है दुनिया, ज्यो कोई जादू-मन्तर है।
बेबस मन के सामने,
अपनी ओर बुलाती भँवरे
डूब गया पतवार।
किस्सों पर कुछ और भी किस्से, झूठे सच्चे अफ़साने,
चला रहे है जीवन को ये बने गये ताने-बाने ।
इस जीवन के सामने
झूठ-मूठ के भ्रम पाले हैं
सावन कभी बहार।
जीवन की हम वही पुरानी परिभाषा दोहराते हैं,
रहने दो अब और बुलावा, दो पल ठहरो, आते हैं।
निर्जन वन के सामने
ठहरा था कुछ पल परदेशी
कोई गया पुकार।