एक-एक पल बीता, एक-एक दिन बीत गये,
मास गये पल-पल कर औ’ कुछ साल गये,
कितने सूरज जन्मे और बड़े होकर
अपनी रक्तिम किरणे जग को दिया किये।
कितने सूरज उदित हुए फिर अस्त हुए;
अंतर के स्वर को दाबे सा मौन-मौन
लेकिन प्रश्न एक है,अब भी वहीं खड़ा,
एक-एक पल बीता, एक-एक दिन बीत गये,
मास गये पल-पल कर औ’ कुछ साल गये,
कितने सूरज जन्मे और बड़े होकर
अपनी रक्तिम किरणे जग को दिया किये।
कितने सूरज उदित हुए फिर अस्त हुए;
अंतर के स्वर को दाबे सा मौन-मौन
लेकिन प्रश्न एक है,अब भी वहीं खड़ा,