
तुमको घुँघरू के स्वर में संगीत सुनाई देता है,
लेकिन जख्मी पाँव कहानी मुझको अलग सुनाते हैं।
सुख पल हैं कुछ दिन,पर ये भी आखिर बीतेंगे ही,
दिन आखिर दिन ही तो ठहरे, यूँ ही आते-जाते हैं।
एक निमिष भर के सौदे में
पूरा जीवन लगा दांव पर,
आये कुछ इल्जाम धूप पर
और दोष कुछ लगे छाँव पर।
तुमको सांसो में जीवन की गूँज सुनाई देती है,
अंतराल स्पन्दन के, पर मुझको रोज डराते हैं।
मुस्कानों का अभिनय है, पर
पीड़ा का अन्तर्मन मन भी है,
मिथ्या का आवरण भले हो,
सच का अपना जीवन भी है।
तुमको नट के करतब में आनंद भले आये, लेकिन-
रोटी के ये समीकरण तो मेरे होश उड़ाते हैं।
यहाँ अकिंचन तन व्याकुल हो,
और आँख में बसी नमी हो,
वहाँ विधाता के हाथों में
जीवन की पतवार थमी हो।
आँख झुका कर तुम सारे आदेश मान लो, यह तुम हो,
लेकिन कुछ उलझे से उत्तर मुझमें प्रश्न उठाते हैं।