मैं अबाध गति हूँ, मैं अमर्त्य जीवन,
कजरी की शाश्वतता, अंतहीन सावन।
गहरी लम्बी सी निशा की मैं झनझन,
डूब रहा तिरता सा एक अकेला मन।
रुकती सी, चलती सी, खुशियाँ और वेदना,
मुझे मत रोकना।
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कुछ मिलता, कुछ खो जाता है,
जगे कोई, कोई सो जाता है,
छीन अगर लेता है कुछ युग,
जीवन कुछ तो दे जाता है।
जीत-हार के जैसी थी।
नटखट बचपन,चंचल यौवन,दुःखी बुढ़ापे जैसी थी।
रामजी की धरती पर रावण की जीत
हँसती रहूं या फिर रो दूँ मैं रामजी?
राधा की धरती पर स्वारथ की प्रीत
जग जाऊँ कुछ छण या सो जाऊँ रामजी?
नीलगगन के सामने
हम भी बदले, तुम भी बदले,
बदल गया संसार।
इसी चमन की आंख ने
यह भी देखा, वह भी देखा
पहुँच गया मँझधार।
सफलता वो ढूंढन जब चला
सफलता न मिलया कोय
मन की सफलता प्राप्त हो
जो तीन रूप में होय
सुख, शान्ति, समृद्धि
कुछ पल की हमें फुरसत दे दो
पल भर कुछ सांसो कुछ सांसे ले लेने दो
अब जियो और जी लेने दो
तन से सुकून की तन्हाई में रहने दो
तन्हा दिल था मेरा फुरसत में थोड़ा अंगराई तो ले लेने दो